छठी इंद्री क्या है? छठी इंद्री कैसे जगाये /जागृत करें? यह कैसे काम करता है? छठी इंद्री कौन कौन सी है? छठी इंद्री जागृत होने का क्या लक्षण है?
छठी इंद्री क्या है? छठी इंद्री कैसे जगाये /जागृत करें? यह कैसे काम करता है? छठी इंद्री कौन कौन सी है? छठी इंद्री जागृत होने का क्या लक्षण है?
विज्ञान और धर्म के अनुसार मानवों के पास केवल पांच ही इंद्रियां होती है. जो उन्हे स्वाद, गंध, स्पर्श आदि के बारे में महसूस कराती हैं. जो इस प्रकार है. नेत्र, नाक, जीभ, कान और त्वचा ये पांच इंद्रि मानव के पास होती है, लेकिन कुछ ही ऐसे लोग होगें जो मानव की छठी इंद्री के बारे में जानते होगें. चलिए हम आपको छठी इंद्री के बारे में बताते है जोकि दिखाई नही देती है. लेकिन आपके अस्तित्व में आप उसे महसूस जरूर कर सकते है.
जब भी अचानक ही आपको आस पास अनहोनी की आशंका होने लगती हैं, या फिर अचानक ही किसी जगह से उठकर चले जाते हो क्योंकि वह जगह आपके अनुकूल नहीं होती हैं. यह छठी इंद्री का संकेत होता है यह हम सब के अंदर होती है. जिसे हम सिक्स्थ सेंस भी कहते है.
बता दें कि यह इंद्री सब में तो होती है, लेकिन हम सब में से बहुत से ऐसे लोग होते हैं. जिनकी यह इंद्री काम करती है. सिक्सथ सेंस दृष्टि, सूंघने की शक्ति, स्वाद, सुनने की शक्ति और स्पर्श के अलावा हमें पूर्वाभास कराने की क्षमता रखती है.
छठी इंद्री क्या है -
वैज्ञानिकों का कहना है कि छठी इंद्री हर किसी मनुष्य में होती है और ये मानसिक चेतना से जुड़ी प्रक्रिया होती हैं. इसी तरह किसी भी व्यक्ति के भविष्य में होने वाली घटना चाहे वो खुद से सम्बंधित हो या परिवार वालों से, उसके बारे में पता चल जाता है.
कई ऐसे लोग होते है, जिनकों इसके बारे में पता होता है, लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम नही होता है कि यह हमारे शरीर के किस हिस्से में होती है यह प्रश्न उनको विचलित करता है. बताते चले कि यह इंद्री हमारे कपाल के नीचे की तरफ एक कोमल छिद्र में पाया जाता है. जहां से सुपुम्ना नाड़ी रीढ़ से होती हुई मुलाधार तक जाती है. यही सुषपम्ना नााड़ी सात चक्रों और छोटी इंद्री का केंद्र मानी गई है.
आमतौर पर ऐसा कहा जाता है कि सिक्स्थ सेंस शिथिल रूप में होती है, लेकिन इसे कई तरीके से जगाया जा सकता हैं. जो व्यक्ति इसे अपने नियंत्रण में कर लेता है उसमे भविष्य में होने वाली घटनाओं का ज्ञात होता है वह अपने भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में जान सकता है.
अगर किसी व्यक्ति की छठी इंद्री जागृत हो जाये तो उसे भविष्य में होने वाली घटनाओं का किसी ना किसी संकेत के रूप में पहले से पता चल जाता है. छठी इंद्री जागृत हो जाने पर हम दूसरे व्यक्तियों के मन के विचार भी जान सकते हैं और कई मीलों दूर बैठे व्यक्ति की बातें सुनने की भी शक्ति आ जाती है.
अगर किसी भी इंसान की सिक्स्थ सेंस पूरी तरह से एक्टिवेट हो जाये तो उससे संसार में कुछ भी छुपा नहीं रह सकता और ऐसे में उस व्यक्ति में अनंत क्षमताओं का विकास हो सकता है. जिनका हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते.
छठी इंद्री कहां होती है और कैसे इसे जाग्रत किया जाता है
यह जानना भी जरूरी है। सिक्स्थ सेंस को जाग्रत करने के लिए वेद, उपनिषद, योग आदि हिन्दू ग्रंथों में अनेक उपाय बताए गए हैं। आओ जानते हैं इसे कैसे जाग्रत किया जाए और इसके जाग्रत करने का परिणाम क्या होगा।
कहां होती है छठी इंद्री :
मस्तिष्क के भीतर कपाल के नीचे एक छिद्र है, उसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं, वहीं से सुषुन्मा रीढ़ से होती हुई मूलाधार तक गई है। सुषुन्मा नाड़ी जुड़ी है सहस्रकार से। इड़ा नाड़ी शरीर के बायीं तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दायीं तरफ। दोनों के बीच स्थित है छठी इंद्री। यह इंद्री सभी में सुप्तावस्था में होती है।
1.प्राणायम के अभ्यास से :
प्राणायाम सबसे उत्तम उपाय इसलिए माना जाता है क्योंकि हमारी दोनों भौहों के बीच छठी इंद्री होती है। सुषुम्ना नाड़ी के जाग्रत होने से ही छठी इंद्री जाग्रत हो जाती है। यही छठी इंद्री है। आप अपनी छठी इंद्री को प्राणायम के माध्यम से छह माह में जाग्रत कर सकते हैं, लेकिन छह माह के लिए आपको दुनियादारी से अलग होना भी जरूरी है।
इड़ा नाड़ी शरीर के बायीं तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दायीं तरफ अर्थात इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर स्थित रहता है। सुषुम्ना मध्य में स्थित है, अतः जब हमारी नाक के दोनों स्वर चलते हैं तो माना जाता है कि सुषम्ना नाड़ी सक्रिय है। इस सक्रियता से ही सिक्स्थ सेंस जाग्रत होता है। इसकी सक्रियता बढ़ाने के लिये निरंतर प्राणायाम करते रहना चाहिए। लेकिन शर्त यह कि उसी के साथ ही यम और नियम का पालन करना भी जरूरी है।
इड़ा, पिंगला और सुषुन्मा के अलावा पूरे शरीर में हजारों नाड़ियां होती हैं। उक्त सभी नाड़ियों का शुद्धि और सशक्तिकरण सिर्फ प्राणायाम और आसनों से ही होता है। शुद्धि और सशक्तिकरण के बाद ही उक्त नाड़ियों की शक्ति को जाग्रत किया जा सकता है।
प्राणायम अभ्यास का स्थान :
अनुलोम और विलोम प्राणायम करें। अभ्यास के लिए सर्वप्रथम जरूरी है साफ और स्वच्छ वातावरण, जहां फेफड़ों में ताजी हवा भरी जा सके अन्यथा आगे नहीं बढ़ा जा सकता। शहर का वातावरण कुछ भी लाभदायक नहीं है, क्योंकि उसमें शोर, धूल, धुएँ के अलावा जहरीले पदार्थ और कार्बन डॉक्साइट निरंतर आपके शरीर और मन का क्षरण करती रहती है। स्वच्छ वातावरण में सभी तरह के प्राणायाम को नियमित करना आवश्यक है।
2. ध्यान के अभ्यास से :
भृकुटी के मध्य निरंतर और नियमित ध्यान करते रहने से आज्ञाचक्र जाग्रत होने लगता है जो हमारे सिक्स्थ सेंस को बढ़ाता है। कहते हैं कि गहरे ध्यान प्रयोग से यह स्वत: ही जाग्रत हो जाती है। प्रतिदिन 40 मिनट का ध्यान इसमें सहायक सिद्ध हो सकता है। 40 मिनट के ध्यान में आपको निर्विचार दशा के लक्ष्य को प्राप्त करना होता है। निर्विचार दशा का अर्थ होता है कि आपके मन और मस्तिष्क में ऐसे किसी भी प्रकार के विचार न हो जो आपको परेशान करते हों। मस्तिष्क को क्षति पहुंचाते हों।
हमारे मन और मस्तिष्क में एक साथ असंख्य कल्पना और विचार चलते रहते हैं। इससे मन-मस्तिष्क में कोलाहल-सा बना रहता है। हम नहीं चाहते हैं फिर भी यह चलता रहता है। आप लगातार सोच-सोचकर स्वयं को कम और कमजोर करते जा रहे हैं। ध्यान अनावश्यक कल्पना व विचारों को मन से हटाकर शुद्ध और निर्मल मौन में चले जाना है। जब आप यह स्थिति प्राप्त कर लेते हैं तो स्वत: ही आपकी छठी इंद्री जाग्रत हो जाती है।
कैसे करें ध्यान :
भृकुटी पर ध्यान लगाकर निरंतर मध्य स्थित अँधेरे को देखते रहें और यह भी जानते रहें कि श्वास अंदर और बाहर हो रही है। मौन ध्यान और साधना मन और शरीर को मजबूत तो करती ही है, मध्य स्थित जो अँधेरा है वही काले से नीला और नीले से सफेद में बदलता जाता है। सभी के साथ अलग-अलग परिस्थितियां निर्मित हो सकती हैं।
मौन से मन की क्षमता का विकास होता जाता है जिससे काल्पनिक शक्ति और आभास करने की क्षमता बढ़ती है। इसी के माध्यम से पूर्वाभास और साथ ही इससे भविष्य के गर्भ में झाँकने की क्षमता भी बढ़ती है। यही सिक्स्थ सेंस के विकास की शुरुआत है।
अंतत: हमारे पीछे कोई चल रहा है या दरवाजे पर कोई खड़ा है, इस बात का हमें आभास होता है। यही आभास होने की क्षमता हमारी छठी इंद्री के होने की सूचना है। जब यह आभास होने की क्षमता बढ़ती है तो पूर्वाभास में बदल जाती है। मन की स्थिरता और उसकी शक्ति ही छठी इंद्री के विकास में सहायक सिद्ध होती है।
3.सेल्फ हिप्नोटिज्म से :
मेस्मेरिज्म या हिप्नोटिज्म जैसी अनेक विद्याएं इस छठी इंद्री को जाग्रत करने का सरल और शॉर्टकट रास्ता है लेकिन इसके खतरे भी हैं। हिप्नोटिज्म को सम्मोहन कहते हैं। सम्मोहन विद्या को ही प्राचीन समय से 'प्राण विद्या' या 'त्रिकालविद्या' के नाम से पुकारा जाता रहा है। आत्म सम्मोहन को सेल्फ हिप्नोटिज्म कहते हैं। आत्म सम्मोहन की शक्ति प्राप्त करने के लिए अनेक तरीके इस्तेमाल किए जाते हैं।
आदिम आत्म चेतन मन ही है सिक्स्थ सेंस : मन के कई स्तर होते हैं। उनमें से एक है आदिम आत्म चेतन मन। आदिम आत्म चेतन मन न तो विचार करता है और न ही निर्णय लेता है। उक्त मन का संबंध हमारे सूक्ष्म शरीर से होता है। यह मन हमें आने वाले खतरे का संकेत या उक्त खतरों से बचने के तरीके बताता है। रोग की पूर्व सूचना इस मन से ही प्राप्त होती है, किंतु व्यक्ति उसे समझ नहीं पाता है। यही सिक्स्थ सेंस है। अर्थात पूर्वाभास हो जाना।
यह मन लगातार हमारी रक्षा करता रहता है। हमें होने वाली बीमारी की यह मन छह माह पूर्व ही सूचना दे देता है और यदि हम बीमार हैं तो यह हमें स्वस्थ रखने का प्रयास करता है। बौद्धिकता और अहंकार के चलते हम उक्त मन की सुनी-अनसुनी कर देते हैं। उक्त मन को साधना ही आत्म सम्मोहन है।
सेल्फ हिप्नोटिज्म कैसे करें?
वैसे इस मन को साधने के बहुत से तरीके या विधियां हैं। लेकिन सीधा रास्ता है कि प्राणायम और प्रत्याहार से धारणा को को साधना। जब आपका मन स्थिर चित्त हो, एक ही दिशा में गमन करे और इसका अभ्यास गहराने लगे तब आप अपनी इंद्रियों में ऐसी शक्ति का अनुभव करने लगेंगे जिसको आम इंसान अनुभव नहीं कर सकता। इसको साधने के लिए त्राटक भी कर सकते हैं त्राटक भी कई प्रकार से किया जाता है। ध्यान, प्राणायाम और नेत्र त्राटक द्वारा आत्म सम्मोहन की शक्ति को जगाया जा सकता है।
आत्म सम्मोहन की अवस्था में शरीर के जिस भी अंग में आपको रोग या दर्द हो आप अपना ध्यान वहाँ लगाकर वहाँ सकारात्मक ऊर्जा का संचारकर उसकी स्वयं ही चिकित्सा कर सकते हैं। लगातार उसके स्वस्थ होते जाने के बारे में आत्म सम्मोहन की अवस्था में कल्पना करने से उक्त स्थान पर रोग में लाभ मिलने लगता है। यह मन स्वत: ही बताता है कि उक्त रोग में कौन सी दवा या चिकित्सा लाभप्रद सिद्ध होगी और इसका इलाज कैसे किया जा सकता है।
अन्य तरीके :
कुछ लोग अंगूठे को आंखों की सीध में रखकर तो, कुछ लोग स्पाइरल (सम्मोहन चक्र), कुछ लोग घड़ी के पेंडुलम को हिलाते हुए, कुछ लोग लाल बल्ब को एकटक देखते हुए और कुछ लोग मोमबत्ती को एकटक देखते हुए भी उक्त साधना को करते हैं, लेकिन यह कितना सही है यह हम नहीं जानते।
4.त्राटक क्रिया से :
त्राटक क्रिया से भी इस छठी इंद्री को जाग्रत कर सकते हैं। जितनी देर तक आप बिना पलक गिराए किसी एक बिंदु, क्रिस्टल बॉल, मोमबत्ती या घी के दीपक की ज्योति पर देख सकें देखते रहिए। इसके बाद आंखें बंद कर लें। कुछ समय तक इसका अभ्यास करें। इससे आप की एकाग्रता बढ़ेगी और धीरे धीरे छठी इंद्री जाग्रत होने लगेगी।
सावधानी : त्राटक के अभ्यास से आंखों और मस्तिष्क में गरमी बढ़ती है, इसलिए इस अभ्यास के तुरंत बाद नेती क्रिया का अभ्यास करना चाहिए। आंखों में किसी भी प्रकार की तकलीफ हो तो यह क्रिया ना करें। अधिक देर तक एक-सा करने पर आंखों से आंसू निकलने लगते हैं। ऐसा जब हो, तब आंखें झपकाकर अभ्यास छोड़ दें। यह क्रिया भी जानकार व्यक्ति से ही सीखनी चाहिए, क्योंकि इसके द्वारा आत्मसम्मोहन घटित हो सकता है।
त्राटक के अभ्यास से अनेक प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है। सम्मोहन और स्तंभन क्रिया में त्राटक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह स्मृतिदोष भी दूर करता है और इससे दूरदृष्टि बढ़ती है।
5.खुद के आभास और बोध को बढ़ाएं :
यदि हमें इस बात का आभास होता है कि हमारे पीछे कोई चल रहा है या दरवाजे पर कोई खड़ा है, तो यह क्षमता हमारी छठी इंद्री के होने की सूचना है। आंतरिक संकेत को सरल रूप में पूर्वाभास भी कहा जा सकता है। इस संकेत के माध्यम से कोई व्यक्ति किसी घटना के होने से पूर्व ही उसके बारे में जान लेता है अथवा किसी घटना के दौरान ही उसे इस बात का आभास हो जाता है कि इसका परिणाम क्या होने वाला है।
त्वरित निर्णय लेने वाले कई लोग, आग बुझाने वाले दल के सदस्य, इमरजेंसी मेडिकल स्टाफ, खिलाड़ियों, सैनिकों और जीवन-मृत्यु की परिस्थितियों में तत्काल निर्णय लेने वाले कई व्यक्तियों में छटी इंद्री आम लोगों की अपेक्षा ज्यादा जाग्रत रहती है। कोई उड़ता हुआ पक्षी अचानक यदि आपकी आंखों में घुसने लगे तो आप तुरंत ही बगैर सोचे ही अपनी आंखों को बचाने लग जाते हैं यह कार्य भी छटी इंद्री से ही होता है।
ऐसा कई बार देखा गया है कि कई लोगों ने अंतिम समय में अपनी बस, ट्रेन अथवा हवाई यात्रा को कैंसिल कर दिया और वे चमत्कारिक रूप से किसी दुर्घटना का शिकार होने से बच गए। जो लोग अपनी इस आत्मा की आवाज को नहीं सुना पाते वह पछताते हैं। घटनाओं पर पछताने की जगह व्यक्ति को अपनी पूर्वाभास की क्षमता को विकसित करना चाहिए ताकि पछतावे की कोई स्थिति उत्पन्न ही न हो।
यदि आप अपने इस अहसास या बोध पर गहराई से ध्यान देने लगेंगे तो आपको पता चलेगा कि आप पहले की अपेक्षा अब अच्छे से पूर्वाभाष करने लगे हैं। जैसे जैसे अभ्यास गहराएगा आपकी छठी इंद्री जाग्रत होने लगेगी। आप अपने अहसास को बढ़ाते जाएं। जब यह आभास होने की क्षमता बढ़ती है तो पूर्वाभास में बदल जाती है। मन की यह स्थिरता और उसकी शक्ति ही छठी इंद्री के विकास में सहायक सिद्ध होती है।
6.योग निद्रा :
योग साधना से भी आप अपनी छठी इंद्री जागृत कर सकते हैं. इसके लिए आँख बंद कर एक एक कर अपने शरीर के सभी अंगों पर ध्यान केंद्रित कीजिये और उनमें होने वाली क्रियाओं को महसूस कीजिये. बाहरी दुनिया से ध्यान हटा लीजिये और ऐसा महसूस कीजिये की आपके शरीर के सभी अंग शिथिल हो चुके हैं.
यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के एक अध्ययन के अनुसार छठी इंद्रिय के कारण ही हमें भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास होता है। रेसिक के अनुसार छठी इंद्रिय जैसी कोई भावना तो है और यह सिर्फ एक अहसास नहीं है। वास्तव में होशो-हवास में आया विचार या भावना है, जिसे हम देखने के साथ ही महसूस भी कर सकते हैं और यह हमें घटित होने वाली बात से बचने के लिए प्रेरित करती है। करीब एक-तिहाई लोगों की छठी इंद्रिय काफी सक्रिय होती है।
सन् 1939 के अगस्त मास में एक दिन लाहौर विश्वविद्यालय का सेनेटहाल, विद्यार्थियों, प्रोफेसरों और सरकारी अफसरों से खचाखच भरा था। गवर्नर और डिवीजनल कमिश्नर भी वहाँ उपस्थित थे। प्रोफेसर हबीब ने छठी इन्द्रिय के कुछ चमत्कार दिखलाने की घोषणा की थी। समय हो जाने पर प्रो. हबीब ने कमिश्नर से कहा कि आप अपने मन से कोई भी पुस्तक उठा लीजिए और उसका कोई पन्ना खोल लीजिए, मैं उस पृष्ठ में लिखे मजमून को आपसे बहुत दूरी पर खड़ा रह कर अक्षरशः पढ़कर सुना दूँगा।
कमिश्नर को विश्वास न हुआ। बिना देखे भला किसी पुस्तक को कैसे पढ़ा जा सकता है? और यदि कोई ऐसी पुस्तक उठाई जाय जिसे प्रोफेसर हबीब ने कभी देखा भी न हो तब? उन्होंने सचमुच एक ऐसी ही पुरानी पुस्तक निकाल कर उसका एक अध्याय खोला। प्रो. हबीब ने उसे लगभग 22 फीट की दूरी पर खड़े रहकर उस पुस्तक को इस तरह स्पष्ट रूप में बाँच कर सुना दिया मानो वह उनके सामने ही खुली रखी हो।
उस सभा में एक अंग्रेज ऐसा भी था जिसे हबीब को पुस्तक पढ़ते देखकर भी विश्वास न हुआ। उसने खड़े होकर कहा- “क्या आप बता सकते हैं कि मेरा घर कहाँ है? मेरे घर का दरवाजा किस तरफ है? मेरी स्त्री का नाम क्या है और मेरे कितनी सन्तानें हैं?”
एक ऐसे व्यक्ति के घर और परिवार का हाल बतलाना जो सात समुद्र पार रहता हो वास्तव में असम्भव ही जान पड़ता था। पर आश्चर्य कि प्रो. हबीब ने थोड़ी देर विचार करने के बाद सब बातें बतला दीं और उस अंग्रेज को स्वीकार करना पड़ा कि वे सब बिल्कुल ठीक थी।
सिकन्दराबाद (हैदराबाद) के एक गाँव में एक भील रहता है जिसका नाम है भन्ना। वह भी अपनी छठी इन्द्रिय की सहायता से अनेक गुप्त बातों को सरलतापूर्वक बता सकता है। गढ़ा हुआ धन, जमीन में कहाँ पानी है और कितनी गहराई पर है, ये सब बातें वह ऐसे ढंग से बता देता है मानों उसकी आँखें जमीन के भीतर का हाल देख सकने में समर्थ है। आपके घर में अगर चोरी हो गई हो तो भन्ना भील से बात करो, वह तुरन्त आपको बतला देगा कि चोर कौन है और वह इस समय कहाँ होगा? इतना ही नहीं वह यह भी बता सकता है कि अमुक स्त्री के गर्भ से लड़का पैदा होगा या लड़की?
इस प्रकार बिना देखी या बिना जानी वस्तुओं के विषय में ठीक-ठीक बतला देने की शक्ति को अंग्रेजी में ‘सिक्सथ सेन्स’ अर्थात् छठी इन्द्रिय कहते हैं। देश और काल की सीमा ही नहीं, इसके द्वारा आप किसी भी व्यक्ति के मन और मस्तिष्क के गुह्य प्रदेश की बातें भी जान सकते हैं। अनेक लोग प्रश्न करेंगे कि क्या वास्तव में ऐसी बात सत्य हो सकती है? ऊपर के उदाहरणों से इसकी सत्यता में सन्देह नहीं किया जा सकता। ऐसे ही और भी अनेक व्यक्तियों के उदाहरण हमारे सुनने में आये हैं।
जयपुर राज्य के चिड़ावा नगर में कुछ वर्ष पहले एक पं. गणेश जी महाराज हो गये हैं। उनमें भी बिना देखी बातों को जानने की दैवी शक्ति स्वाभाविक रूप से प्रकट हो गई थी। एक दिन नगर के बाजार में बैठे बैठे वे अचानक जोर से बोल उठें- ‘अरे रे, वह तो कूद ही पड़ा और मर गया। जाओ! सब मस्तक के बाल मुँडा डालो।” उन दिनों में राजस्थान की रियासतों में यह प्रथा थी कि अगर राजा मर जाय तो छोटे बड़े सब मस्तक मुड़ावें। श्रीगणेश जी महाराज ने जिस समय उपरोक्त शब्द कहे थे उसी समय खेतड़ी के राजा ने ताजमहल की मीनार से कूद कर जान दे दी थी। इसकी खबर चिड़ावा में कई दिन बाद आई, पर गणेश महाराज को वह घटना उसी समय दिखलाई पड़ गई थी।
इस प्रकार की एक नहीं सैकड़ों घटनायें समाचार पत्रों और पुस्तकों में देखने को मिलती हैं। स्विट्जरलैंड की एक स्त्री को अपनी बहिन की मृत्यु का आभास उसी समय हो गया था, यद्यपि उसकी बहिन कई हजार कोस की दूरी पर अमरीका में मरी थी। जावा में भी एक आदमी को अपनी माता की मृत्यु की इसी प्रकार खबर पड़ गई थी, यद्यपि उसकी माँ दक्षिण केरोलिना में थी। इन घटनाओं में जिन व्यक्तियों को दूर की घटनाएं दिखलाई पड़ी, उनमें यह शक्ति सदैव नहीं पाई जाती थी, पर उस समय किसी मानसिक आकर्षण के कारण उनको अपने प्रियजन के देहान्त की सूचना दैवी रीति से मिल गई।
ऐसी छठी इन्द्रिय की शक्ति कुछ पशुओं में भी उत्पन्न हो जाती है। अमरीका के रिकमेंड नगर में रहने वाली श्रीमती सी. डी. फोडानी के पास एक घोड़ी है। जो ऐसी-ऐसी बातों का जवाब दे सकती है कि दर्शक दंग रह जाते हैं। इसी तरह जापान के प्रधान सेनापति जनरल टोजो के पास एक बिल्ली थी जो नक्शा पर पैर रखकर यह बतला देती थी कि युद्ध में जापानी फौज को किस तरफ बढ़ना चाहिये। जनरल टोजो प्रायः उसके संकेत के अनुसार अपनी फौज को धावा करने का हुक्म देते थे और उनको बराबर सफलता मिलती थी, लोगों ने उसका नाम ‘मैप रीडिंग केट’ (नक्शा पढ़ने वाली बिल्ली) रख दिया था।
प्रत्येक मनुष्य में सामान्यतः पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ होती हैं। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि मनुष्य अपनी इन्द्रियों द्वारा ही स्पर्श, स्वाद, गन्ध, श्रवण और देखने का कार्य करता है। पर इनके सिवाय मनुष्य में दो अन्य शक्तियाँ भी होती हैं, जिनका प्रयोग करना अभी वह नहीं सीख सका है। ये शक्तियाँ कम या अधिक मात्रा में प्रत्येक व्यक्ति में पाई जाती हैं, और कभी-कभी संयोगवश किसी में विकसित होकर प्रकट भी हो जाती हैं। चिकित्सा विज्ञान के अंतर्गत इन शक्तियों की ग्रन्थियों को ‘पीनियल’ और ‘पिट्युटरी’ ग्रन्थि कहा जाता है। इन्हीं दोनों के सम्मिश्रण से अन्तर दृष्टि उत्पन्न हो जाती है।
अमरीका के ड्यूक विश्व विद्यालय की प्रयोगशाला में डॉक्टर हाइन छठी इन्द्रिय के विषय में प्रयोग कर रहे हैं। इन प्रयोगों द्वारा वे यह मालूम करना चाहते हैं कि मनुष्य किस प्रकार इस शक्ति को प्राप्त कर सकता है? डॉक्टर हाइन के सिवाय अन्य अनेक वैज्ञानिक भी इस सम्बन्ध में खोज कर रहे हैं। जिस दिन इन लोगों को अपने कार्य में सफलता मिल जायगी उस दिन यन्त्र युग से बढ़कर एक आश्चर्यजनक युग का आरम्भ होगा, जिसकी अद्भुत संभावनाओं की अभी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
यद्यपि अभी पश्चिमी वैज्ञानिक इस विषय की बाहरी सीमा पर भी नहीं पहुँचे हैं, पर भारतवासियों ने इस विज्ञान की बहुत पहले खोज कर ली थी। हमारे देश में जो योग विद्या प्रचलित है, यह उसका एक बहुत छोटा अंग है। पाठको में से अनेकों ने कुण्डलिनी शक्ति का नाम सुना होगा। इसी कुण्डलिनी को जागृत करने से यह दूरदर्शन की शक्ति ही नहीं, वरन् और भी अनेक अद्भुत शक्तियाँ-जैसे परकाया प्रवेश-उत्पन्न हो जाती हैं। योग की इस शक्ति को भारतीय ही स्वीकार नहीं करते, वरन् कलकत्ता हाईकोर्ट के भूतपूर्व जज सर जान वुडरफ जैसे अंग्रेज महापुरुष भी उसका अध्ययन और मनन कर चुके हैं और उन्होंने इस सम्बन्ध में ‘सर्पेण्टाइल पावर’ नाम का बहुत बड़ा ग्रन्थ भी लिखा है जो आज भी सभ्य संसार में आदरणीय स्थान रखता है। हमारे देश के तो बहुसंख्यक व्यक्ति आज भी योगाभ्यास की कितनी ही क्रियाओं को करके लाभ उठाते रहते हैं और वे चाहें तो कुण्डलिनी योग द्वारा अपनी छठी इन्द्रिय को विकसित करके दूरदृष्टि द्वारा कुछ उपकार कर सकते हैं।
अब आप जान गए होगें कि छठी इंद्री क्या होती है और इसे कैसे सक्रिय किया जा सकता है. तो बस आज से ही इन अभ्यासों को जारी करें और हो सकता है कुछ समय में ही आपकी छठी इंद्री सक्रिय हो जाये. इसके बाद आप भी भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास कर सकते हैं.
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