mushroom ki kheti kaise kare? Mushroom ki kheti karne ka tareeka/vidhi aur training center सभी जानकरिया हिंदी मे

mushroom ki kheti kaise kare? Mushroom ki kheti karne ka tareeka/vidhi aur training center सभी जानकरिया हिंदी मे

mushroom ki kheti kaise kare? Mushroom ki kheti karne ka tareeka/vidhi aur training center 

सभी जानकारिया  

हिंदी मे  






मित्रो, आज कई लोग मशरूम की खेती को अपने अजीविका का साधन बनाकर बढ़िया लाभ अर्जित कर खेती के क्षेत्र मे सफल है l मशरूम की फसल अच्छे दामों मे बिकती है और इसके विक्री से किसान तथा लोगो को आर्थिक सहायता काफ़ी हद तक प्राप्त होता है तो आईये जानते है की मशरूम की खेती कैसे होती है?  और मशरूम के कितने प्रकार होते है?  और मशरूम की खेती के लिए ट्रेनिंग कहा से ले? और क्या सरकार इसके लिए सब्सिडी देती है? मशरूम की खेती के लिए बीज गांव या शहर के ब्लॉक पर उपलब्ध होती है l सबसे ज्यादा मशरूम की खेती भारत मे हरियाणा मे होती है इसमें वहा की सरकार किसानो को प्रोत्साहित करती है ल मशरूम मे सबसे अच्छा बटन मशरूम मानी जाती है जो 200 रुपया प्रति किलो मिल जाती है l



 मशरुम की खेती

 तथा 

मशरूम के लाभ/  

उपयोगिता/mushroom ke labh


हजारों वर्षों से विश्‍वभर में मशरूमों की उपयोगिता भोजन और औषध दोनों ही रूपों में रही है। ये पोषण का भरपूर स्रोत हैं और स्‍वास्‍थ्‍य खाद्यों का एक बड़ा हिस्‍सा बनाते हैं। मशरूमों में वसा की मात्रा बिल्‍कुल कम होती हैं, विशेषकर प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की तुलना में, और इस वसायुक्‍त भाग में मुख्‍यतया लिनोलिक अम्‍ल जैसे असंतप्तिकृत वसायुक्‍त अम्‍ल होते हैं, ये स्‍वस्‍थ ह्दय और ह्दय संबंधी प्रक्रिया के लिए आदर्श भोजन हो सकता है। पहले, मशरूम का सेवन विश्‍व के विशिष्‍ट प्रदेशों और क्षेत्रों त‍क ही सीमित था पर वैश्‍वीकरण के कारण विभिन्‍न संस्‍कृतियों के बीच संप्रेषण और बढ़ते हुए उपभोक्‍तावाद ने सभी क्षेत्रों में मशरूमों की पहुंच को सुनिश्चित किया है। मशरूम तेजी से विभिन्‍न पाक पुस्‍तक और रोजमर्रा के उपयोग में अपना स्‍थान बना रहे हैं। एक आम आदमी को रसोई में भी उसने अपनी जगह बना ली है। उपभोग की चालू प्रवृत्ति मशरूम निर्यात के क्षेत्र में बढ़ते अवसरों को दर्शाती है।



भारत मेें मशरुम की खेती-आम प्रजातियां/मशरूम के प्रकार तथा मशरूम की खेती के लिए तापमान/mushroom ke kheti ke liye tapman


भारत में उगने वाले मशरूम की दो सर्वाधिक आम प्र‍जातियां वाईट बटन मशरूम और ऑयस्‍टर मशरूम है। हमारे देश में होने वाले वाईट बटन मशरूम का ज्‍यादातर उत्‍पादन मौसमी है। इसकी खेती परम्‍परागत तरीके से की जाती है। सामान्‍यता, अपॉश्‍चयरीकृत कूडा खाद का प्रयोग किया जाता है, इसलिए उपज बहुत कम होती है। तथापि पिछले कुछ वर्षों में बेहतर कृषि-विज्ञान पदधातियों की शुरूआत के परिणामस्‍वरूप मशरूमों की उपज में वृद्धि हुई है। आम वाईट बटन मशरूम की खेती के लिए तकनीकी कौशल की आवश्‍यकता है। अन्‍य कारकों के अलावा, इस प्रणाली के लिए नमी चाहिए, दो अलग तापमान चाहिए अर्थात पैदा करने के लिए अथवा प्ररोहण वृद्धि के लिए (स्‍पॉन रन) 220-280 डिग्री से, प्रजनन अवस्‍था के लिए (फल निर्माण) : 150-180 डिग्री से; नमी: 85-95 प्रतिशत और पर्याप्‍त संवातन सब्‍स्‍ट्रेट के दौरान मिलना चाहिए जो विसंक्रमित हैं और अत्‍यंत रोगाणुरहित परिस्थिति के तहत उगाए न जाने पर आसानी से संदूषित हो सकते हैं। अत: 100 डिग्री से. पर वाष्‍पन (पास्‍तुरीकरण) अधिक स्‍वीकार्य है।



प्‍लयूरोटस, ऑएस्‍टर मशरूम का वैज्ञानिक नाम है। भारत के कई भागों में, यह ढींगरी के नाम से जाना जाता है। इस मशरूम की कई प्रजातिया है उदाहणार्थ :- प्‍लयूरोटस ऑस्‍टरीयटस, पी सजोर-काजू, पी. फ्लोरिडा, पी. सैपीडस, पी. फ्लैबेलैटस, पी एरीनजी तथा कई अन्‍य भोज्‍य प्रजातियां। मशरूम उगाना एक ऐसा व्‍यवसाय है, जिसके लिए अध्‍यवसाय धैर्य और बुद्धिसंगत देख-रेख जरूरी है और ऐसा कौशल चाहिए जिसे केवल बुद्धिसंगत अनुभव द्वारा ही विकसित किया जा सकता है।


प्‍लयूरोटस मशरूमों की प्ररोहण वृद्धि (पैदा करने का दौर) और प्रजनन चरण के लिए 200-300 डिग्री का तापमान होना चाहिए। मध्‍य समुद्र स्‍तर से 1100-1500 मीटर की ऊचांई पर उच्‍च तुंगता पर इसकी खेती करने का उपयुक्‍त समय मार्च से अक्‍तूबर है, मध्‍य समुद्र स्‍तर से 600-1100 मीटर की ऊचांई पर मध्‍य तुंगता पर फरवरी से मई और सितंबर से नवंबर है और समुद्र स्‍तर से 600 मीटर नीचे की निम्‍न तुंगता पर अक्‍तूबर से मार्च है।


मशरूम की खेती के लिए आवश्‍यक सामान


1. धान के तिनके - फफूंदी रहित ताजे सुनहरे पीले धान के तिनके, जो वर्षा से बचाकर किसी सूखे स्‍थान पर रखे गए हो।


2. 400 गेज के प्रमाप की मोटाई वाली प्‍लास्टिक शीट - एक ब्‍लाक बनाने के लिए 1 वर्ग मी. की प्‍लास्टिक शीट चाहिए।


3. लकड़ी के सांचे - 45X30X15 से. मी. के माप के लकड़ी के सांचे, जिनमें से किसी का भी सिरा या तला न हो, पर 44X29 से. मी. के आयाम का एक अलग लकड़ी का कवर हो।


4. तिनकों को काटने के लिए गंडासा या भूसा कटर।


5. तिनकों को उबालने के लिए ड्रम (कम से कम दो)


6. जूट की रस्‍सी, नारियल की रस्‍सी या प्‍लास्टिक की रस्सियां


7. टाट के बोरे


8. स्‍पान अथवा मशरूम जीवाणु  जिन्‍हें सहायक रोगविज्ञानी, मशरूम विकास केन्‍द्र, से प्रत्‍येक ब्‍लॉक के लिए प्राप्‍त किया जा सकता है।


9. एक स्‍प्रेयर


10. तिनकों के भंडारण के लिए शेड 10X8 मी. आकार का।



 मशरूम की खेती करने का तरीका प्रक्रिया/mashroom kheti karne ka tareeka


कूड़ा खाद तैयार करना

कूड़ा खाद बनाने के लिए अन्‍न के तिनकों (गेंहू, मक्‍का, धान, और चावल), मक्‍कई की डंडिया, गन्‍ने की कोई जैसे किसी भी कृषि उपोत्‍पाद अथवा किसी भी अन्‍य सेल्‍यूलोस अपशिष्‍ट का उपयोग किया जा सकता है। गेंहू के तिनकों की फसल ताजी होनी चाहिए और ये चमकते सुनहरे रंग के हो तथा इसे वर्षा से बचा कर रखा गया है। ये तिनके लगभग 5-8 से. मी. लंबे टुकडों में होने चाहिए अन्‍यथा लंबे तिनकों से तैयार किया गया ढेर कम सघन होगा जिससे अनुचित किण्‍वन हो सकता है। इसके विप‍रीत, बहुत छोटे तिनके ढ़ेर को बहुत अधिक सघन बना देंगे जिससे ढ़ेर के बीच तक पर्याप्‍त ऑक्‍सीजन नहीं पहुंच पाएगा जो अनएरोबिक किण्‍वन में परिणामित होगा। गेंहू के तिनके अथवा उपर्युक्‍त सामान में से सभी में सूल्‍यूलोस, हेमीसेल्‍यूलोस और लिग्‍निन होता है, जिनका उपयोग कार्बन के रूप में मशरूम कवक वर्धन के लिए किया जाता है। ये सभी कूडा खाद बनाने के दौरान माइक्रोफ्लोरा के निर्माण के लिए उचित वायुमिश्रण सुनिश्चित करने के लिए जरूरी सबस्‍टूटे को भौतिक ढांचा भी प्रदान करता है। चावल और मक्‍कई के तिनके अत्‍यधिक कोमल होते है, ये कूडा खाद बनाने के समय जल्‍दी से अवक्रमित हो जाते हैं और गेंहू के तिनकों की अपेक्षा अधिक पानी सोखते हैं। अत:, इन सबस्‍टूट्स का प्रयोग करते समय प्रयोग किए जाने वाले पानी की प्रमात्रा, उलटने का समय और दिए गए संपूरकों की दर और प्रकार के बीच समायोजन का ध्‍यान रखना चाहिए। चूंकि कूड़ा खाद तैयार करने में प्रयुक्‍त उपोत्‍पादों में किण्‍वन प्रक्रिया के लिए जरूरी नाइट्रोजन और अन्‍य संघटक, पर्याप्‍त मात्रा में नहीं होते, इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए, यह मिश्रण नाइट्रोजन और कार्बोहाइड्रेट्स से संपूरित किया जाता है।


स्‍पानिंग

स्‍पानिंग अधिकतम तथा सामयिक उत्‍पाद के लिए अंडों का मिश्रण है। अण्‍डज के लिए अधिकतम खुराक कम्‍पोस्‍ट के ताजे भार के 0.5 तथा 0.75 प्रतिशत के बीच होती है। निम्‍नतर दरों के फलस्‍वरूप माइसीलियम का कम विस्‍तार होगा तथा रोगों एवं प्रतिद्वान्द्वियों के अवसरों में वृद्धि होगी उच्‍चतर दरों से अण्‍डज की कीमत में वद्धि होगी तथा अण्‍डज की उच्‍च दर के फलस्‍परूप कभी-कभी कम्‍पोस्‍ट की असाधारण ऊष्‍मा हो जाती है।


ए बाइपोरस के लिए अधिकतम तापमान 230 से (+) (-) 20 से./उपज कक्ष में सापेक्ष आर्द्रता अण्‍डज के समय 85-90 प्रतिशत के बीच होनी चाहिए।


कटाई

थैले को खोलने के 3 से 4 दिन बाद मशरूम प्रिमआर्डिया रूप धारण करना शुरू कर देते हैं। परिपक्‍व मशरूम अन्‍य 2 से 3 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। एक औसत जैविक कारगरहा (काटे गए मशरूम का ताजा भार जिसे एयर ड्राई सबट्रेट द्वारा विभक्‍त किया गया हो X100) 80 से 150 प्रतिशत के बीच हो सकती है और कभी-कभी उससे ज्‍यादा। मशरूम को काटने के लिए उन्‍हें जल से पकड़ा जाता है तथा हल्‍के से मरोड़ा जाता है तथा खींच लिया जाता है। चाकू का इस्‍तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। मशरूम रेफ्रीजेरेटर में 3 से 6 दिनों तक जाता बना रहता है।




मशरूम गृ‍ह/कक्ष कौन कौन से और किसी प्रकार के होने चाहिए?/mashroom ki kheti ke liye gruh v kaksh


क्‍यूब तैयार करने का कक्ष


एक आदर्श कक्ष आर.सी.सी. फर्श का होना चाहिए, रोशनदानयुक्‍त एवं सूखा होना चाहिए। लकड़ी के ढांचे को रखने, क्‍यूब एवं अन्‍य आर.सी.सी. चबूतरा के लिए कक्ष के अंदर 2 सेमी ऊंचा चबूतरा बनाया जाना चाहिए, ऐसा भूसे के पाश्‍चुरीकृत थैलों को बाहर निकालने की आवश्‍यतानुसार होना चाहिए। जिन सामग्रियों के लिए क्‍यूब को बनाने की आवश्‍यकता है, उन्‍हें कक्ष के अंदर रखा जाना चाहिए। क्‍यूब को तैयार करने वाले व्‍यक्तियों को ही कमरे के अंदर जाने की अनुमति दी जानी चाहिए।


उठमायन कक्ष


उण्‍डजों के संचालन के लिए कमरा  यह कमरा आरसीसी भवन अथवा आसाम विस्‍म (घर में कोई अलग कमरा) का कमरा होना चाहिए तथा खण्‍डों को रखने के लिए तीन स्‍तरों में साफ छेद वाले बांस की आलमारी लगाई जानी चाहिए। पहला स्‍तर जमीन से 100 सेमी ऊपर होना चाहिए तथा दूसरा स्‍तर कम से कम 60 सेमी ऊंचा होना चाहिए।


फसल कक्ष


एक आदर्श गृह/कक्ष आर.सी.सी. भवन होगा जिसमें विधिवत उष्‍मारोधन एवं कक्ष को ठंडा एवं गरम करने का प्रावधान स्‍थापित किया गया होगा। तथापि बांस, थप्‍पर तथा मिट्टी प्‍लास्‍टर जैसे स्‍थानीय रूप से उपलब्‍ध सामग्रियों का इस्‍तेमाल करते हुए स्‍वदेशी अल्‍प लागत वाले घर की सिफारिश की गई है। मिट्टी एवं गोबर के समान मिश्रण वाले स्पिलिट बांस की दीवारें बनाई जा सकती है।


कच्‍ची ऊष्‍मारोधक प्रणाली का प्रावधान करने के लिए घर के चारों ओर एक दूसरी दीवार बनाई जाती है जिसमें प्रथम एवं दूसरी दीवार के मध्‍य 15 सेमी का अंत्तर रखा जाता है। बाहरी दीवार के बाहरी तरफ मिट्टी का पलास्‍टर किया जाना चाहिए। दो दीवारों के मध्‍य में वायु का स्‍थान ऊष्‍मा रोधक का कार्य करेगा क्‍योंकि वायु ऊष्‍मा का कुचालक होती है। यहां तक कि एक बेहतर ऊष्‍मारोधन का प्रावधान किया जा सकता है यदि दीवारों के बीच के स्‍थान को अच्‍छी तरह से सूखे 8 ए छप्‍पर से भर दिया जाए। घर का फर्श वरीयत: सीमेंट का होना चाहिए किन्‍तु जहां यह संभव नही है, अच्‍छी तरह से कूटा हुआ एवं प्‍लास्‍टरयुक्‍त मिट्टी का फर्श पर्याप्‍त होगा। तथापि, मिट्टी की फर्श के मामले में अधिक सावधानी बरतनी होगी। छत मोटे छापर की तहो अथवा वरीयत: सीमेंट की शीटों की बनाई जानी चाहिए। छप्‍पर की छत से अनावश्‍यक सामग्रियों के संदूषण से बचने के लिए एक नकली छत आवश्‍यक है। प्रवेश द्वार के अलावा, कक्ष में वायु के आने एवं निकलने के लिए कमरे के आयु एंव पश्‍च भाग के ऊपर एवं नीचे दोनों तरफ से रोशनदानों का भी प्रावधान किया जाना चाहिए। घर तथा कक्षा ऊर्ध्‍वाधर एवं अनुप्रस्‍थ बांस के खम्‍भों के ढांचो का होना चाहिए जो ऊष्‍मायन अवधि के उपरान्‍त खंडों को टांगने के लिए अपेक्षित है। अनुप्रस्‍थ खम्‍भों को ऊष्‍मायन आलमारी के रूप में 3 स्‍तरीय प्रणाली में व्‍यवस्थि‍त किया जा सकता है। खम्‍भे वरीयत: दीवारों से 60 सेमी दूर तथा तीनों स्‍तरों की प्रत्‍येक पंक्ति के बीच में होने चाहिए, 1 सेमी की न्‍यूनतम जगह बनाई रखी जानी चाहिए। 3.0X2.5X2.0 मी. का फसल कक्ष 35 से 40 क्‍यूबों को समायोजित करेगा।


मशरूम की खेती करने की विधि व तरीका 


. भूसे को हाथ के यंत्र से 3-5 सेमी लम्‍बे टुकडों में काटिए तथा टाट की बोरी में भर दीजिए। एक ड्रम में पानी उबालिए। जब पानी उबलना शुरू हो जाए तो भूसे के साथ टाट की बोरी को उबलते पानी में रख दीजिए तथा 15-20 मिनट तक उबालिए। इसके पश्‍चात फेरी को ड्रम से हटा लीजिए तथा 8-10 घंटे तक पड़े रहने दीजिए ताकि अतिरिक्‍त पानी निकल जाए तथा चोकर को ठंडा होने दीजिए। इस बात का ध्‍यान रखा जाए कि ब्‍लॉक बनाने तक थैले को खुला न छोड़ा जाए क्‍योंकि ऐसा होने पर उबला हुआ चोकर संदूषित हो जाएगा। हथेलियों के बीच में चोकर को निचोड़कर चोकर की वांछित नमी तत्‍व का परीक्षण किया जा सकता है तथा सुनिश्चित कीजिए कि पानी की बूंदे चोकर से बाहर न निकलें।


. चोकर के पाश्‍चुरीकृत का दूसरा तरीका भापन है। इस तरीके के लिए ड्रम में थोड़े परिवर्तन की आवश्‍यकता होती है (ड्रम के ढक्‍कन में एक छोटा छेद कीजिए तथा चोकर को उबालते समय रबर की ट्यूब से ढक्‍कन के चारों ओर सील लगा दीजिए) टुकड़े-डुकड़े किए गए चोकर को पहले भिगो दीजिए तथा अतिरिक्‍त पानी निकाल दिया जाए। ड्रम में कुछ पत्‍थर डाल दीजिए तथा पत्‍थर के स्‍तर तक पानी उड़ेलिए। बांस की टोकरी में रखकर गीले चोकर को उबाल दें तथा ड्रम के अंदर पत्‍थर के ऊपर टोकरी को रख दें। ड्रम के ढक्‍कन को बंद कर दें तथा रबर की ट्यूब से ढक्‍कन की नेमि को सील कर दीजिए। उबले हुए पानी से उत्‍पन्‍न भाप चोकर से गुजरते हुए इसे पाश्‍चु‍रीकृत करेगी। उबालने के बाद चोकर को पहले से कीटाणुरहित किए गए बोरी में स्‍थानांतरित कर दिजिए तथा 8-10 घंटे तक इसे ठंडा होने के लिए छोड़ दीजिए।


. लकड़ी का एक सांचा लीजिए तथा चिकने फर्श पर रख दीजिए। पटसून की दो रस्सियों ऊर्ध्‍वाधर एवं अनुप्रस्‍थ रूप में रख दीजिए। प्‍लास्टिक की शीट से अस्‍तर लगाइए जिसे पहले उबलते पानी में डुबोकर कीटाणुरहित किया गया है।


. 5 सेमी. के उबले चोकर को भर दीजिए तथा लकड़ी के ढक्‍कन की मदद से इसे सम्‍पीडित कीजिए तथा पूरी सतह पर स्‍पान को छिड़किए।


. स्‍पानिंग की प्रथम तह के उपरान्‍त 5 सेमी का अन्‍य चोकर रखिए तथा सतह पर पुन: स्‍थान का छिड़काव करें तथा प्रथम तह में किए गए की तरह इसे सम्‍पीडित कीजिए। इस प्रकार तह पर स्‍पान को 4 से 6 तह तक के लिए तब तक छिड़किए जब तक चोकर सांचे के शीर्ष के स्‍तर तक न आ जाए। एक (1) एक पैकेट स्‍पान का इस्‍तेमाल 1 क्‍यूब अथवा ब्‍लाक के लिए किया जाना चाहिए।


. अब प्‍लास्टिक की शीट सांचे की शीर्ष पर मोडी जाए प्‍लास्टिक के नीचे पहले रखी गई पटसून की रस्सियों से उसे बांध दिया जाए।


. बांधने के उपरांत सांचे को हटाया जा सकता है तथा चोकर का आयताकर खंड पीछे बच जाता है।


. वायु के लिए खंड के सभी तरफ छेद (2 मिमी व्‍यास) बनायें।


ऊष्‍मायन कक्ष में ब्‍लॉक को रख दीजिए उन्‍हें सरल तह में एक दूसरे के बगल रखा जाए तथा इस बात का ध्‍यान रखा जाए कि उन्‍हें फर्श पर अथवा एक दूसरे के शीर्ष पर सीधे न रखा जाए क्‍योंकि इससे अतिरिक्‍त ऊष्‍मा उत्‍पन्‍न होगी।


. ब्‍लॉक का तापमान 250 से. पर रखा जाए। ब्‍लॉक के छिद्रों में एक तापमापक डालकर इसे नोट किया जा सकता है। यदि तापमान 250 से. से ऊपर जाता है तो कमरे में गैस भरने की सलाह दी जाती है। तथा यदि तापमान में गिरवाट आती है, तो कमरे को धीरे-धीरे गर्म किया जाना चाहिए।


पूरे पयाल में फैलने के लिए स्‍पान को 12 से 15 दिन लगता है तथा जब पूरा ब्‍लॉक सफेद हो जाए तो यह निशान है कि स्‍पान संचालन पूरा हो गया है।


अण्‍डज परिपालन के उपरांत ब्‍लॉक से रस्‍सी तथा प्‍लास्टिक की शीट को हटा दीजिए। नारियल की रस्‍सी से ब्‍लॉक को अनुप्रस्‍थ रूप में बांध दीजिए तथा इसे फसल कक्ष में लटका दीजिए। इस अवस्‍था से आगे कमरे की सापेक्ष आर्द्रता 85 प्रतिशत से कम नहीं होनी चाहिए। ऐसे दीवारों तथा कमरे की फर्श पर जल छिड़क करके समय-समय पर किया जा सकता है। यदि फर्श सीमेंट का है, तो सलाह दी जाती है कि फर्श पर पानी डालिए ताकि फर्श पर हमेश पानी रहे। यदि खंड हल्‍का से सूखने का लक्षण जिससे लगे तो स्‍प्रेयर के माध्‍यम से स्‍प्रे किया जा सकता है।


ए‍क सप्‍ताह से 10 दिन के भीतर ब्‍लॉक की सतह पर छोटे-छोटे पिन शीर्ष दिखाई पड़ेगे तथा ये एक या दो दिन के भीतर पूरे आकार के मशरूम हो जाएंगे।


. जब फल बनना शुरू होता है तो हवा की जरूरत बढ़ जाती है। अत: जब एक बार फल बनना शुरू हो जाता है तो आवश्‍यक है कि हर 6 से 12 घण्‍टो बाद कमरे के सामने और पीछे दिए गए वेंटीलेटर खोलकर ताजी हवा अंदर ली जाए।


जब आवरणों की परिधि ऊपर की ओर मुड़ना शुरू हो जाती है तो फल काया (मशरूम) तोड़ने के लिए तैयार हो जाते है। ऐसा जाहिर होगा क्‍योंकि छोटी-छोटी सिलवटें आवरण पर दिखाई पड़ने लगती है।


मशरूम को काटने के लिए अंगूठे एवं तर्जनी से आधार पर डाल को पकड़ लीजिए तथा हल्‍के क्‍लाकवाइज मोड़ से पुआल अथवा किसी छोटे मशरूम उत्‍पादन को विक्षोभित किए बिना मशरूम को डाल से अलग कर लीजिए। काटने के लिए चाकू अथवा कैंची का इस्‍तेमाल मत करें। एक सप्‍ताह के बाद ब्‍लॉक में फिर से फल आने शुरू हो जाएंगे।


मशरूम की उपज कितनी प्राप्त होती है  ?/mashroom ki kheti se kitni upaj hoti hai? 


मशरूम प्रवाह में दिखाई पड़ते है। एक क्‍यूब से लगभग 2 से 3 प्रवाह काटे जा सकते है। प्रथम प्रवाह की उपज ज्‍यादा होती है तथा तत्‍पश्‍चात धीरे-धीरे कम होने लगती है तथा एक क्‍यूब से 1.5 किग्रा से 2 किग्रा तक के ताजे मशरूम की कुल उपज प्राप्‍त होती है। इसके बाद क्‍यूब को छोड़ दिया जाता है तथा फसल कक्ष से काफी दूर पर स्थित एक गड्ढे में पाट दिया जाता है अथवा बगीचे अथवा खेत में खाद के रूप में इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।


मशरूम की खेती की लिए आवश्यक है परिरक्षण/mashroom ki kheti ki inspection 


मशरूम को ताजा खाया जा सकता है अथवा इसे सुखाया जा सकता है। चूंकि वे शीघ्र ही नष्‍ट हो जाने वाले प्रकृति के होते हैं तो आगे के इस्‍तेमाल अथवा दूरस्‍थ विपणन के लिए उनका परिरक्षण आवश्‍यक है। ओयेस्‍टर मशरूम को परि‍रक्षित करने का सबसे पुराना एवं सस्‍ता तरीका है धूप में सुखाना।


गर्म हवा में सुखाना कारगर उपयोग है जिसके द्वारा मशरूम को डिहाइड्रेटर (स्‍थानीय रूप से तैयार उपस्‍कर) नामक उपस्‍कर में सुखाया जाता है मशरूम को एक बंद कमरे में लगे हुए तार के जाल से युक्‍त रैक में रखा जाता है तथा गर्म हवा (500 से 550 से) 7-8 घंटे तक रैक के माध्‍यम से गुजरती है। मशरूम को सुखाने के बाद इसे वायुसह डिब्‍बे में स्‍टोर किया जाता है अथवा 6-8 माह के लिए पोलीबैग में सील कर दिया जाता है। पूरी तरह से सोखने के उपरांत मशरूम अपने ताजे वजन से कम होकर एक से घट कर तैरहवां भाग रह जाता है जो सुरक्षा के आधार पर अलग-अलग होता है। मशरूम को ऊष्‍ण जल में भिगोकर आसानी से पुन: जलित किया जा सकता है।


मशरूम पे लगनेवाले रोग एवं पीट/mashroom me lagnewale rog/decease


. हरी फफूँद 

. कीड़े 

. कूटकी 

. शम्बूक

. इंक कैप 

. अन्य कीटानु 


यदि मशरूम की देखभाल न की जाए तो अनेक रोग एवं पीट इस पर हमला कर देते हैं।



मशरूम मे लगनेवाले रोग व रोकथाम 


1. हरी फफूंद (ट्राइकोडर्मा विरिडे) : यह कस्‍तूरा कुकुरमुत्ते में सबसे अधिक सामान्‍य रोग है जहां क्‍यूबों पर हरे रंग के धब्‍बे दिखाई पड़ते है।


1. नियंत्रण : फॉर्मालिन घोल में कपड़े को डुबोइए (40 प्रतिशत) तथा प्रभावित क्षेत्र को पोंछ दीजिए। यदि फफूंदी आधे से अधिक क्‍यूब पर आक्रमण करती है तो सम्‍पूर्ण क्‍यूब को हटा दिया जाना चाहिए। इस बात की सावधानी रखी जानी चाहिए कि दूषित क्‍यूब को पुनर्संक्रमण से बचाने के लिए फसल कक्ष से काफी दूर स्‍थान पर जला दिया जाए अथवा दफना दिया जाए।


कीड़े


2. मक्खियां : देखा गया है कि स्‍कैरिड मक्खियां, फोरिड मक्खियां, सेसिड मक्खियां कुकुरमुत्ते तथा स्‍पॉन की गंध पर हमला करती हैं। वे भूसी अथवा कुकुरमुत्ते अथवा उनसे पैदा होने वाले अण्‍डों पर अण्‍डे देती हैं तथा फसल को नष्‍ट कर देती हैं। अण्‍डे माइसीलियम, मशरूम पर निर्वाह करते हैं एवं फल पैदा करने वाले शरीर के अंदर प्रवेश कर जाते हैं तथा यह उपभोग के लिए अनुपयुक्‍त हो जाता है।


नियंत्रण : फसल की अवधि में बड़ी मक्खियों के प्रवेश को रोकने के लिए दरवाजों, खिडकियों अथवा रोशनदानों पर पर्दा लगा दीजिए यदि कोई, 30 मेश नाइलोन अथवा वायर नेट का पर्दा। मशरूम गृहों में मक्‍खीदान अथवा मक्खियों को भगाने की दवा का इस्‍तेमाल करें।


3. कुटकी : ये बहुत पतले एवं रेंगने वाले छोटे-छोटे कीड़े होते हैं जो कुकुरमुत्ते के शरीर पर दिखाई देते हैं। वे हानिकारक नहीं होते है, किन्‍तु जब वे बड़ी संख्‍या में मौजूद होते है तो उत्‍पादक उनसे चिंतित रहता है।


नियंत्रण : घर तथा पर्यावरण को साफ सुथरा रखें।


4. शम्‍बूक, घोंघा : ये पीट मशरूम के पूरे भाग को खा जाते हैं जो बाद में संक्रमित हो जाते हैं तथा वैक्‍टीरिया फसल के गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव डालते हैं।


नियंत्रण : क्‍यूब से पीटों को हटाइए तथा उन्‍हें मार डालिए। साफ सुथरी स्थिति को बनाये रखें।


अन्‍य कीटाणु


5.कृन्‍तक : कृन्‍तकों का हमला ज्‍यादातर अल्‍प कीमत वाले मशरूम हाउसों पर पाया जाता है। वे अनाज की स्‍पॉन को खाते हैं तथा क्‍यूबों के अंदर छेद कर देते हैं।


नियंत्रण : मशरूम गृहों में चूहा विष चारे का इस्‍तेमाल करें। चूहों की बिलों को कांच के टुकडों एवं पलास्‍टर से बंद कर दें।


6.इंक कैप (कोपरीनस सैप) यह मशरूम का खर-पतवार है जो फसल होने के पहले क्‍यूबों पर विकसित होता है। वे बाद में परिपक्‍वता अवधि पर काले स्लिमिंग काई में विखंडित हो जाते है




व्यवसायिक बटन खुम्ब फार्म की संरचना/button mashroom cultivation 


परिचय


आजकल विश्व में खुम्ब उत्पादन मुद्रा अर्जन का सर्वश्रेष्ठ साधन तथा एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्यवसायिक फसल है। खुम्ब न केवल बहुत ही पौष्टिक खाद्य पदार्थ है अपितु खाद्य एवं कृषि संस्थान द्वारा इसे एक स्वास्थ्यवर्धक प्रोटीन पोषण के रूप में अनुमोदित किया गया है। खुम्ब उत्पादन का महत्व न केवल कृषि प्रति उत्पाद के प्रयोग में है बल्कि साथ ही साथ इसके लिए भूमि की आवश्यकता नहीं होती है और इसका उत्पादन बंद कमरे में नियंत्रित वातावरण में किया जाता है। इसके अलावा खुम्ब उत्पादन में जगह का प्रयोग उर्ध्वाधार दिशा में भी किया जाता है।


खुम्ब उत्पादन के लिए कृषि योग्य भूमि की आवश्यकता नहीं पड़ती है अपितु बंजर भूमि का प्रयोग खाद बनाने, बीज बनाने, खुम्ब उत्पादन एवं पश्च फसल उत्पाद के लिए प्रयोग किया जा सकता है। भारत में खुम्ब का उत्पादन जाड़े के मौसम में, जब तापमान कम होता है, तथा कृत्रिम नियंत्रित वातावरण कक्षों में किया जाता है। इन दोनों ही तरह के उत्पादन के लिए उत्पादन सुविधाओं की आवश्यकता होती है।


खुम्ब के मौसमी उत्पादन में लागत कम होती है और साथ ही साथ उत्पादन भी कम होता है तथा नियंत्रित वातावरण उत्पादन में उत्पादन अधिक होता है एवं लागत भी ज्यादा होती है।




बटन मशरूम के फायदे/benefits of button and khumb mashroom 

मशरूम एक बहुत ही पौष्टिक खाना है, जिस के चलते इस की आजकल बाजार में अच्छी मांग बनी हुए है| घर हो या रेस्टोरेंट या ढाबा या सरकारी व प्राइवेट कंपनी की मेस हो, सब जगह मशरूम की सब्जी बनना आम बात है|


किसानों को मशरूम की इस डिमांड का फायदा उठाना है, तो अच्छी फसल पैदा करने के साथ ही मशरूम की पैकिंग, स्टोरेज जैसी बातों को गंभीरता से लेते हुए उम्दा क्वालिटी का मशरूम बाजार में पहुंचना होगा, तब जा कर किसानों को मशरूम का अच्छा दाम मिल सकेगा|


मशरूम एक बहुत ही नाजुक फसल यानी प्रोडक्ट है, जरा सी लापरवाही से तैयार मशरूम को ख़राब होने में जरा सा भी समय नहीं लगेगा| तैयार मशरूम को तोड़ने के फौरन बाद मार्केटिंग कर के बाजार में बेच देना होता है| खरीदार को भी इसे फौरन इस्तेमाल (सब्जी बनाने में) करना जरूरी होता है|


अगर किसान मशरूम की ठीक से पैकिंग कर दे, तो इस को कुछ दिनों तक पौष्टिकता के साथ रखा जा सकता है| इस के लिए किसानों को मशरूम की पैंकिंग और स्टोरेज पर ज्यादा ध्यान देना होगा|


मशरूम के लिए उपयुक्त जलवायु/mashroom ke liye upyukt jalvayu


मशरूम को सही नमी व तापमान पर 1-2 दिनों तक ही रख सकते हैं| अगर सही नमी और तापमान पर नहीं रखेंगे तो इस की क्वालिटी ख़राब होने लगती हैं| मशरूम तोड़ने के फौरन बाद सब्जी बनाने में इस्तेमाल कर लिया जाता है, इसलिए इस की फ़ौरन मार्केटिंग करनी पड़ती है| बाजार में बेचने के लिए मशरूम को बाजार की मांग के मुताबिक पालीथीन की पारदर्शी थैलियों में 100 ग्राम, 200 ग्राम, 500 ग्राम की मात्रा में पैक करते हैं|


 मशरूम की फसल तैयार होने के पश्चात् तोड़ाई के बाद पैकिंग प्रक्रिया/mashroom packing process 


मशरूम की तोड़ाई बाद ग्रेडिंग कर के इसे पालीथीन की आरपार दिखने वाली थैलियो में पैक करते हैं| मशरूम की तोड़ाई के बाद इस के तने को थोड़ा सा काट कर पानी से धोते हैं, ताकि उस पर लगा कम्पोस्ट वगैरह हट जाए|


धुलाई के लिए एकदम साफ पानी यानी जो पानी पीने लायक हो उसे ही लेते हैं| पानी में किसी भी तरह का प्रदूषण नहीं होना चाहिए| मशरूम की धुलाई के बाद उस की ग्रेडिंग की जाती है| ग्रेडिंग बाजार के मुताबिक ही करते हैं|


अच्छी क्वालिटी का मशरूम एकदम सफेद चमकदार व साफ सुथरा होना चाहिए यानी मशरूम पर किसी भी तरह का दाग धब्बा नहीं होना चाहिए| ग्राहक सफेद, चमकदार व साफ मशरूम खरीदना पसंद करते हैं|


मशरूम की सफेदी बढ़ाने के लिए सोडियम पारक्साइड या पोटैशियम मेटा बाइसल्फाइड के तय शुदा घोल में तय समय के लिए उसे डुबो कर जालीदार कपड़े पर फैला कर छाया में सुखाते हैं| अच्छी तरह से सूखने के बाद मशरूम को पैकिंग के लिए प्लास्टिक की पारदर्शी थैलियों में बाजार की मांग के वजन के मुताबिक पैक कर देते हैं|


मशरूम भी फलों और हरी सब्जियों की तरह ख़राब होने का गुण रखता है, इसलिए मशरूम को पैक कर के फौरन रेफ्रीजरेटर या कोल्ड स्टोरेज में रख दें या फौरन बाजार में बेच कर पैसा बना लें|


मशरूम कप पैक की गई सीलबंद थैलियों में 2 से 5 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर 3 दिनों तक बिना खराब हुए रखा जा सकता है| जीरो डिग्री तापमान पर मशरूम को 5 दिनों तक पैक कर के रख सकते हैं| 4 से 5 डिग्री तापमान पर 2 दिनों तक और 8 से 40 डिग्री तापमान पर केवल 1 दिन तक मशरूम को स्टोर कर के मजफूज रखा जा सकता है|


मशरूम के स्टोर रूम में आक्सीजन की कमी कतई न होने दें और स्टोर रूम में वेंटिलेशन यानी हवा आनाजाना लगातार बना रहना चाहिए| स्टोर रूम में नमी जरूरत के मुताबिक एक जैसी ही बनाए रखें| 5 फीसदी नमी मशरूम को स्टोर करने के लिए सही मानी गई है|


मौसम, कितने दिनों तक स्टोर करना है और इलाके के मुताबिक नमी कम या ज्यादा जरूरत के मुताबिक एक जैसी ही बनाए रखें| 5 फीसदी नमी मशरूम को स्टोर करने के लिए सही मानी गई है|


मौसम, कितने दिनों तक स्टोर करना है और इलाके के मुताबिक नमी कम या ज्यादा रखी जा सकतीLocal है| अगर जरूरत महसूस हो, तो पैक की गई थैलियों में 2-3 मिली मीटर आकार के 5-7 छेद कर दें, जिस से पैक किए गए मशरूम को आक्सीजन की कमी न हो और मशरूम खराब होने की संभवना कम जो जाए| बाजार यानी मंडी में पैक की गई मशरूम को एयर कंडीशंड गाड़ी में ले जाना चाहिए, जिस से ट्रांसपोर्टेशन में वह खराब न हो और हिफाजत के साथ बाजार और खरीदार तक पंहुच जाए| अगर मशरूम की ढंग से पैंकिग नहीं हुई है, तो ट्रांसपोर्टेशन के समय उस के खराब होने की पूरी गूंजाइश हो जाती हैं इसलि मशरूम की पैकिंग और स्टोरेज में किसी भी तरह की कोताही न बरतें


कई लोग (किसान) मिल कर एयर कंडीशंड गाड़ी किराए पर ले कर मशरूम को बाजार तक पहुंच सकते हैं| इस से ट्रांसपोर्टेशन की लागत में कमी लाई जा सकती है और मुनाफा ज्यादा मिल सकता है| अच्छे क्वालिटी वाला प्रोडक्ट उपभोक्ता तक पहुँचे|


समय समय पर मशरूम की खेती, पैकिंग वगैरह पर ट्रेनिंग लेते रहना चाहिए, मशरूम की पैंकिंग और खेती की नई तकनीकों की ट्रेनिंग एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी या कृषि विज्ञान केंद्र ले ली जा सकती है|




मशरूम की खेती के लिए कहा से ले  ट्रेनिंग?/mashroom ki kheti ke liye training kaha se le? 


राज्य सरकारें और केंद्र सरकार इस बाबत किसानों को ट्रेनिंग की सुविधा मुहैया कराती हैं, ताकि किसान अच्छी क्वालिटी का ज्यादा मशरूम पैदा कर सकें|


अच्छा दाम हासिल करने के लिए किसान मशरूम की मार्केटिंग मिलजुल कर यानी सहकारिता के आधार पर भी सकते हैं| जिन से लगातार पैदावार पूरे साल मिलते रहें| बेहतर होगा कि मौसम, इलाके व बाजार की मांग के मुताबिक ही किस्मों का चुनाव कर के मशरूम की खेती करें|


हमारे देश में ज्यादातर 3 तरह की मशरूम (बटन मशरूम, ढिंगरी मशरूम, पेड्डी स्ट्रा मशरूम) की खेती की जाती है|


मशरूम कितने प्रकार के होते है? और किस मशरूम के लिए कौन सी जलवायु और उपयोगिता /mashroom ke prakar


1.बटन मशरूम की खेती 


इस किस्म की मशरूम को 15-20 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान और 85 से 90 फीसदी नमी में उगाया जाता है| बटन मशरूम को सर्दी के मौसम में गेहूं के भूसे या  धान की पुआल पर उगाया जा सकता है|


2.ढिंगरी मशरूम की खेती 


dhingriमार्च महीने से ले कर सितंबर महीने के बीच इस मशरूम को 20-30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान और 80 से 90 फीसदी नमी में उगाते हैं| बोआई के 15 दिनों बाद ही ढिंगरी मशरूम सब्जी बनाने लायक हो जाती हैं|


3.पेड्डी स्ट्रा मशरूम खेती 


इस मशरूम को गरमी के मौसम में 30 से 35 डिग्री तापमान में धन की पुआल पर 80 फीसदी नमी के साथ आसानी से उगाया जा सकता है| यह मशरूम खाने में बहुत स्वादिष्ठ होती है|


कुछ ख़ास बातें जो बढ़ा सकती हैं पैदावार और क्वालिटी/mashroom ki paidawar aur quality kaise badhaye? 


. मशरूम की फसल पर कब्वेव, सूखे बूलबूले, गिले बूलबूले व सबरीना सडन बीमारियाँ लगती हैं| मशरूम को बीमारियों से बचाने के लिए उसे उगाने वाली जगह की सफाई रखनी चाहिए| मशरूम उगाने वाले कमरे में ताजा हवा का आनाजाना लगातार बना रहना चाहिए    और नमी तय पैमाने पर होने चाहिए|


. मशरूम उगाने वाली कम्पोस्ट पर 10 से 15 दिनों के अंतर पर मैंकोजेब दवा का छिड़काव करें| ऐसा करने से कम्पोस्ट पर फफूंदी नहीं उगेगी और उम्दा क्वालिटी की मशरूम पैदा होगी|


. मशरूम को बैक्टीरियल बीमारी से बचाने के लिए नमी और सफाई का खास ध्यान रखें और जरूरत पड़ने ब्लीचिंग पाउडर की डेढ़ ग्राम मात्रा को 10 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें|


 

किस महीने में कौन सी मशरूम की पैदावार होती है? /kis mahine me kaun se mashroom ki kheti kare? 


. मार्च से अगस्त महीने के बीच पेड्डी स्ट्रा मशरूम की खेती करें|


. अक्टूबर महीने से ले कर मार्च महीने के बीच बटन मशरूम पैदा करने का सही समय होता है|


. अगस्त महीने से ले कर अप्रैल महीने के बीच ढिंगरी या आयस्टर मशरूम उगाने का समय होता है|


मशरूम की खेती के लिए सरकारी सब्सिडी/mashroom ki kheti ke liye subsidy -


भारत मे आज मशरूम की खेती का प्रचलन बढ गया है आज सरकार 40% फीसदी सब्सिडी मशरूम की खेती पर देती है और सरकारी ब्लॉक पर जाकर हम इसलिए योजना का लाभ ले सकते है l


For more interesting article please visit -hindinewsaurgyandhara.blogspot.com


#Mushroom ki kheti kaise kare#मशरूम की खेती के लिए सरकारी सब्सिडी#बटन मशरूम की खेती#mushroom ki kheti ki training#mushroom se labh#mushroom ke prakar



Post a Comment

और नया पुराने