sabse kam umar ke IAS ansar ahmad shaikh के संघर्ष भरी कहानी

sabse kam umar ke IAS ansar ahmad shaikh के संघर्ष भरी कहानी

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 वर्तमान समय में जहां युवाओं की बड़ी तादाद अपने लक्ष्य तय नहीं कर पा रही, वहीं छात्रों का एक समूह ऐसा भी है जो अपनी इच्छाशक्ति के साथ करियर में सुनहरी ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए सभी रूढ़ियों को तोड़ रहे हैं. सभी सुविधाओं के साथ लक्ष्य को पा लेना आसान है, लेकिन परेशानियों में दिन काटने, सुविधाओं के बगैर हर कामयाब होने वाले की कहानी अपनी आप में एक मिसाल बनती है.महाराष्ट्र के जालना गांव के निवासी अंसार के भाई पेशे से मैकेनिक हैं. परिवार की कमजोर आर्थिक स्थितियों के बावजूद, अंसार ने शुरू से ही पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया. उन्होंने पुणे के प्रतिष्ठित कॉलेज से पॉलीटिकल साइंस में B.A किया. उन्होंने भारत की सबसे प्रतिष्ठित प्रतिस्पर्धी यूपीएससी परीक्षा क्रैक करने के लिए धार्मिक भेदभाव सहित सभी बाधाओं को खारिज कर मिसाल कायम की.

एक गरीब रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार से आने वाले अंसार की उपलब्धि सराहना के लायक है. अंसार की कामयाबी उन गरीब उम्मीदवारों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी जो कट-ऑफ प्रतियोगिता की दुनिया में अपनी पहचान बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं.

अंसार के मुताबिक, पिछड़े, अविकसित क्षेत्र और अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक ने उनके लिए अंतर्दृष्टि का काम किया, जिससे वे समाज में मौजूद अंतरों का अध्ययन गहराई से कर पाए. इसके अलावा, सामाजिक अस्थिरता के साथ उनकी पहली ही कोशिश ने उन्हें एक प्रशासक के रूप में समस्याओं के ज्वलंत समाधान दिए.

दृढ इच्छाशक्ति के बल पे तीन सालो तक 12 घंटे लगातार काम करके भारत मे upsc परीक्षा मे 361 वी  पायदान हासिल किये. 

अंसार को कई-कई दिनों तक एक वक्‍त खाना खाकर गुजारा करना पड़ता था.वहीं ऐसे हालातों में अंसार के अब्‍बा चाहते थे कि पढ़ाई छोड़कर वे घर के खर्च में हाथ बटाएं.




महज 21 साल की उम्र में अंसार ने देश की सबसे प्रतिष्‍ठित एग्‍जाम में शुमार यूपीएससी परीक्षा में 371 वीं रैंक हासिल की. मगर ये सफर उनके लिए आसान कतई नहीं था. दरअसल बचपन में एक वक्‍त ऐसा था, जब अंसार को दो वक्‍त की रोटी तक नहीं मिल पाती थी. कई-कई दिनों तक एक वक्‍त का ही खाना खाकर गुज़ारा करना पड़ता था. ऐसे हालातों में अंसार के अब्‍बा उनकी पढ़ाई छुड़वाना चाहते थे. वे चाहते थे कि अंसार पढ़ाई छोड़कर घर के खर्च में हाथ बटाएं.

अंसार बताते हैं, 'मेरे पिता ऑटो रिक्शा चलाते थे और मां खेती में मजदूरी करते थे. पापा हर रोज मात्र सौ से डेढ़ सौ रुपये कमाते थे. उसमें अम्‍मी-अब्‍बा समेत दो बहनें और हम दो भाई थे. इन सबका भरण-पोषण से लेकर पढ़ाई-लिखाई हो पाना संभव नहीं था. फिर सूखाग्रस्त इलाका होने की वजह से यहां खेती भी ठीक से नहीं हो पाती थी. वहीं गांव के ज्यादातर लोग शराब की शिकार में डूब चुके थे.' अंसार के पिता भी हर दिन शराब पीकर आधी रात को घर आते और गाली-गलौज करते थे. ऐसे माहौल में अंसार की पढ़ाई तो दूर की बात थी. यहां तो दो वक्‍त की रोटी मिलना मुश्‍किल हो रही थी.

आर्थिक तंगी की वजह से अंसार को किताबें खरीदने में आती थी मुश्‍किल




पिता ने पढ़ाई छुड़ाकर नौकरी पर लगवाने की ठान ली थी -

 अंसार कहते हैं, घर के हालात खराब होने की वजह से रिश्‍तेदारों ने अब्‍बा ने मुझसे पढ़ाई छोड़ने को कहा. ये कहने वे मेरे स्‍कूल भी चले गए लेकिन मेरे टीचर ने ऐसा करने से मना कर दिया. टीचर ने अब्‍बू को समझाया कि मैं पढ़ाई में बहुत अच्‍छा हूं. मुझे रोकना नहीं चाहिए. इस तरह धीरे-धीरे करके मैंने दसवीं तक की परीक्षा पास की.

पिताजी ऑटो चलाते तो माँ खेतो मे मजदूरी करती -

अंसार बताते हैं, मेरी मां भी घर का खर्चा चलाने के लिए खेतों में मजदूरी किया करती थीं, ताकि हम बच्‍चों को दो वक्‍त की रोटी मिल सके लेकिन फिर भी कई-कई दिन ऐसे होते थे, जब हम भाई-बहन एक वक्‍त ही रोटी खाते थे.

91 % अंक अर्जित किया 12वी मे -

अंसार बताते हैं, जब वे जिला परिषद के स्कूल में पढ़ते थे तो, मिड डे मील ही भूख मिटाने का जरिया हुआ करता था. यहां  भोजन में उन्हें अक्सर कीड़े मिलते थे, लेकिन फिर भी भूख मिटाने के लिए उन्हें उसका ही सहारा लेना होता था. समय बीतता गया और बारहवीं में उन्होंने 91 फीसदी अंक के साथ परीक्षा पास की. यह उनके सफलता का पहला पायदान थी. इसके बाद उनके पैरेंट्स ने कभी उन्‍हें पढ़ाई के लिए नहीं रोका.

ख्वाहिश  और  स्वप्न पर कोई पाबंद नही -

 अंसार कहते हैं, मैं पढ़ाई के दौरान ही मैं एक ऐसे शख्‍स से मिले जो ब्‍लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर बन गए थे. उनको देखकर मैं बहुत प्रभावित हुआ. इसके बाद मैं उनसे पूछने लगा कि ऑफिसर कैसे बनते हैं तो उन्‍होंने मुझे कई एग्‍जाम के बारे में बताया.  इनमें से ही एक एग्‍जाम था कि यूपीएससी एग्‍जाम. यहीं से मैंने तय किया था कि अब तो मुझे यही एग्‍जाम क्‍लीयर करना है. हालांकि ये आसान नहीं था, क्‍योंकि मेरे पास खाने के लिए पैसे नहीं थे तो तैयारी के लिए कहां से आते लेकिन सोच लिया था कि सपने देखने के तो पैसे नहीं लगते. इसलिए मैंने ये ख्‍वाब देखा और काम करने के बारे में सोचा.

 भ्रष्टाचार मिटाने के लिए ठाना ऑफिसर बनने का –

बीपीएल वर्ग को मिलने वाली एक योजना का लाभ लेने जब अंसार के पिता ऑफिस पहुंचे तो वहां बैठे ऑफिसर ने अंसार के पिता से घूस मांगी और अंसार के पिता ने उन्हें घूस दी. तब अंसार को लगा कि इस करप्शन का शिकार हम जैसे गरीब लोग सबसे ज्यादा होते हैं. इस भ्रष्टाचार को मिटाने हेतु उन्होंने ठाना की उन्हें इसे समाप्त करना है . ऑफिसर बनने की तो ठीन ली पर रास्ता नहीं पता था कि तभी दूसरों के माध्यम से मार्ग खुला. इस घटना के बाद अंसार के दसवीं के एक शिक्षक का चयन एमपीएससी में हो गया, जिसे देखकर अंसार बहुत प्रभावित हो गये कि मुझे भी सर के जैसा ऑफिसर बनना है. दसवीं के बाद जब अंसार कॉलेज पहुंचे तो उनके एक और शिक्षक जो खुद एमपीएससी की तैयारी कर रहे थे ने अंसार को यूपीएससी के बारे में भी बताया, वस यहीं से उन्होंने मन बना लिया कि वे भी यह परीक्षा पास करेंगे. मजे की बात यह है कि अंसार का एमपीएससी परीक्षा में चयन नहीं हुआ.




अंसार के लिये यह सफर आसान नहीं था. दसवीं, बारहवीं यहां तक की कॉलेज के पहले साल भी अंसार ने हर साल छुट्टियों में काम किया लेकिन आखिरी दो साल वे पूरा फोकस पढ़ाई पर करना चाहते थे. ऐसे में जब-जब पैसे की कमी आयी अंसार के भाई अनीस शेख जिन्होंने खुद अपनी पढ़ाई 5वीं में ही छोड़ दी थी और जोकि उम्र में अंसार से छोटे हैं ने हमेशा अंसार को पैसे भेजे. अंसार अपने मां-बाप के साथ ही भाई को भी अपनी इस सफलता का क्रेडिट देते हैं. अंसार आगे बताते हैं कि यूपीएससी में असफलता का डर उन्हें कभी नहीं सताया क्योंकि वे जानते थे कि यह नहीं तो कुछ नहीं. उनके हालात उन्हें डू और डाई वाली स्थिति में ले आये थे जहां हारने का विकल्प था ही नहीं. लेकिन अंसार शेख ने हार नही मानी 


वेटर का काम कर संघर्ष किया-

वे कहते हैं, मैंने बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद यूपीएससी की परीक्षा तैयारी करने के लिए पैसे जुटाने का सोचा. इसके बाद मैंने होटल में वेटर का काम किया. यहां लोगों को पानी सर्व करने से लेकर मैं फर्श पर पोछा तक लगाता था. यहां सुबह आठ बजे से रात के ग्‍यारह बजे तक काम करता था.

आखिर सफलता मिल ही गई !!-

आईएएस अधिकारी अंसार बताते हैं कि आखिरकार मेरी मेहनत रंग लाई. मैंने साल 2015 में यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली थी. मेरी देश भर में 371वीं रैंक आई थी.  मुझे याद है कि उस दिन भी मेरे पास खाने के पैसे नहीं थे. दरअसल मेरे दोस्‍त ने रिजल्‍ट देखकर जब मुझसे पार्टी मांगी तो भी मेरी जेब में इतने पैसे नहीं थे कि खुशी में उनको कुछ मीठा भी खिला सकूं. उस वक्‍त मेरे दोस्‍त ने मेरी मदद की. आज खुश हूं  अपनी मेहनत पर और सफलता पर भी. फिलहाल मैं MSME और पश्चिम बंगाल सरकार में OSD पर अधिकारी के रूप में कार्यरत हूं.


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